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(११४) रमणी वरिशुं ॥ ३ ॥ ए अखजो मुजने घणो ए, पूरो सीमंधर देव ॥ इहां थकी हुं वीनवू, अवधारो मुझ सेव ॥ ४॥६ए अथ श्रीसिहाचलजीनुं त्रीजु चैत्यवंदन ॥ विमलकेवलझानकमला, कलित त्रिजुवन हितकरं ॥ सुरराजसंस्तुतचरणपंकज, नमो आदिजिनेश्वरं ॥ १॥ विमलगिरिवरशंगमंडण, प्रवरगुणगणनधरं ॥ सुरअसुर किन्नर कोडि सेवित ॥ नमो० ॥२॥ करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिन गुण मनहरं॥ निर्जरावली नमे अदनिश॥ नमो० ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी, कोडि पण मुनि मनहरं ॥श्री विमल गिरिवर शृंग सिहा ॥ नमो० ॥४॥ निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोडिनंत ए गिरिवरं ॥ मुक्ति रमणीवर्या रंगे॥ नमो० ॥ ५ ॥ पातालनरसुरलोक मांही,
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