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(६०) अतिचार. तेनादडप्पउँगे घर बादार, क्षेत्र, खले, परायुं अणमोकल्युं लीधुं, वावर्यु; चोराई वस्तु लीधी; चोर प्रत्ये संबल दीg; विरु: राज्यादि कर्म कीधुं; कूडां मान, मापां कीधां; माता, पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र वंची कुणदने दीy; जूदी गांठ कीधी; नवा जूना, सरस नीरस, वस्तुतणाने
संनेल कीधां. बीजे अदत्तादान व्रत विषइयो अनेरो० ॥ ७॥
चोथे स्वदारासंतोष परस्त्रीगमनविरमण व्रते पांच अतिचार. अपरिग्गदिया ईतर ॥अपरिग्रदिता गमन कीg; अनंग क्रीडा कीधी; विवादकरण कीg; काम नोग तणे विषे अति अनिलाष कीधो; दृष्टि विपर्यास कीधो; आठम चन्दशी तणा नियम लेश नांग्या; अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, सुहणे स्वप्नांतरे हुआ.
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