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(१२) ॥ अथ श्रीमदावीरजिनछंद ॥
॥सेवो वीरने चित्तमा नित्य धारो, अरिक्रोधने मन्नथी दूर वारो ॥ संतोषत्ति धरो चित्तमांदि, राग द्वेषथी दूर था उबादिं॥१॥ पड्या मोदना पासमां जेद प्राणी, शुभ तत्त्वनी वात तेणे न जाणी॥ मनुष जन्म पामी तथा कां गमो गे, जैन मार्ग बंडी जुला कां नमोगे ॥२॥ अलोनी अमानी निरागी तजो गे, सलोनी समानी सरागी नजोगे ॥ दरिदरादि अ. न्यथी शुं रमो गे, नदी गंग मूकी गळीमां पडो गे ॥३॥ केश देव दाथे असि चक्रधारा, केइ देव घाले गळे रंड माला ॥ के देव उत्संगे राखे वामा, के देव साथे रमे उंदरामा ॥४॥ केश देव जपे खेश जपमाला, केश मांसनदी महा वीक
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