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________________ (२०५) गणी मनहजिणाणण्नी सज्जाय कहेवी. इहां सवारे देव वांदवा तेमां " मन्ह जिणाणं” नी सज्जाय कहेवी, अने मध्यान्हे तथा सांके देव वांदवामां सज्जाय न कहेवी ॥ इति ॥ ॥अथ देवसि प्रतिक्रमणविधि ॥ प्रथम पूर्वनी रीतिये सामायिक खेवं. पठी पाणी वापर्यु होय तो खमासण दश"श्वा० संदि जग मुहपत्ति पमिलेहं ? छ” एम कही बेसीने फक्त मुहपत्ति पमिलेदवी अने जो आहार वापर्यो होय तो बे वांदणां देवां; त्यां बीजा वांदणामां"आवस्सियाए" ए पद न कहेतां श्रवग्रहमा ज उना रहीने “ श्चकारी जग पसाय करी पञ्चरकाणनो आदेश देशोजी” एम कहेवू, पडी वमिल पञ्चकाण करावे या पोते यथाशक्ति पच्चरकाण करे. पनी खमासमण दक्ष उन्ना थ“श्नासंदिग्नगा चैत्यवंदन करूं ?" एम कहे; पनी बेसीने वडिल चैत्यवंदन करे वमिल न होय तो पंचांग प्रणिपातथी (बंने ढींचण जमीन उपर स्थापी) पोते करे. पली "जं किंचि"कहेवू.पड़ी नमुत्थुणं कह। उन्ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003024
Book TitlePanchpratikramanadi Stotrani
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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