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________________ ( २१० ) " स्सग्ग, पञ्चरकाण कर्यु बेजी.” “इलामो अणुसहिं” एम कही वेसीने " नमो खमासमणाणं, नमोऽर्हत् इत्यादि" पाठ कही, नमोऽस्तु वर्द्धमानाय० कहेतुं. (हीं स्त्री होय तो ते संसादावानी त्रण थोय कहे) पी नमुत्थुणं कही " इछाकारेण संदि० जग० स्तवन जणुं ? इवं एम कही स्तवन कहेतुं ( स्तवन पूर्वाचार्यनुं बनावेलुं जंगमां तुं पांच गाथानुं होतुं जोइए). पढी वरकनक कही पूर्वनी पेठे जगवानादिचारने जगवानहं विगेरे कहीं चार खमासव योजवंदन करवुं पठी जमणो हाथ चरवला या भूमिपर स्थापी डाइजेसु० कहे वं. पनी उजा थइ इवा० संदि० जग० देवसि - पायवित्तविसोहणत्थं काउस्सग्ग करूं ? इछं, देवसिपायवित्तविसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं" अन्नत्थ कही चार लोगस्स या सोल नवकारनो काजस्ग्ग करी, पारी, प्रगट लोगस्स कदेवो. पती वे खमासण देवा पूर्वक "सज्जाय संदिसावं ? इछं. सज्जाय करूं ? " एवी ते वे आदेश मागी बेसीने एक नवकार ग 46 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003024
Book TitlePanchpratikramanadi Stotrani
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1914
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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