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(१४१) ॥ अथ द्वितीय शिखामण सज्छाय॥
॥ जीव वारुं छं मोरा वालमा, परनारीथी प्रीति म जोड ॥ परनारीनी संगत नहीं नली, तारा कूलमा लागशे खोड ॥ जीव ॥१॥ जीव आ संसार के कारमो, दीसे ने आळ पंपाळ ॥ जीव एवं जाणी चेतजो, आगल मागडे नाखी जान॥जीव०॥g॥ जीव मात पिता नाइ बेनडी, सह कुटुंब तणो परिवार ॥ जीव वेती वारे सहु सगुं, पळे लांबा कीधा जूदार ॥ जीव० ॥३॥ देहली लगे सगी अंगना, शेरी अलगे सगी माय ॥ जीव सीम लगे साजन नलो, प हंस एकीलो जाय ॥ जीव०॥४॥ जीव जातां थका नवि जाणीयु, नवि जाण्यो वार कुवार ॥ जीव गाडुं नरीयुं इंधणे, वळी खोखरी हांडली सार ॥ जीव ॥५॥जीव आठम
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