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पंथे, नवसग्गे तद य रयणी ॥ २० ॥ जो पढइ जो निसुाइ, ताणं कणो य माणतुंगस्स । पासो पावं पसमेन सयलजुवच्चिच्चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठा - सुरम्मि काणा जो न संचलिये | सुरनर किन्नरजुवईदिं, संधु जयन पासजिणो ॥ २२ ॥ एस्स मज्जयारे, प्रहारसरकरेहिं जो मंतो । जो जागाइ सो कायइ, परमपयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥ पासद समरण जो कुइ, संतुठे दियए । अहुत्तरसयवादिनय, नासर तस्स दूरे ॥ २४ ॥ इति श्रीमदानयहरनामकं स्मरणं संपूर्णम् ॥ ५ ॥
६ ॥ अथ प्रजितशान्तिस्तवन ॥ || जि जिप्रसवजयं, संतिं च पसंतसवगयपावं | जयगुरु संतिगुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥ १ ॥ गादा ॥
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