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दोष लाग्यो दोय ते सवि हुँ मन-वचनकायाए करी मिनामि उक्कम ॥ इति ॥२॥ गाथा [२] गुरु [७] बघु [ ६७ ] सर्ववर्ण [४] ११॥ अथ जगचिंतामणिचैत्यवंदनम् ॥
श्बाकारेण संदिसद भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? श्वं ॥ जगचिंतामणि जगनाद, जगगुरु जगरकण ॥ जगबंधव जगसत्यवाद, जगन्नावविअरकण ॥ अहावयसंविध-रूव कम्मळविणासण ॥ चनवीसंपि जिणवर, जयंतु अप्पडिदयसासण ॥१॥ कम्मन्नूमिदिं कम्मन्नूमिदि, पढमसंघयणि॥उकोसय सत्तरिसय, जिणवराण विदरंत लब्न॥ नवकोडिहिं केवलिण, कोदिसदस्स नव साहु गम्मश् ॥ संप जिणवर वीस मुणि, बिहुँकोडिदिं वरनाण ॥ समणहकोमि सदसज्अ, थुणिका निच्च विदाणि ॥२॥ जयन सामिय
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