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६. (इसी तरह) अप्काय में गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः
असंख्यात (उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी) काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो ।
७. (इसी तरह) तेजस्काय (अग्नि) में गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः असंख्यात (उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी) काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो ।
८.
(इसी तरह) वायुकाय गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः असंख्यात (उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी) काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो ।
६. (इसी तरह) वनस्पति-काय में गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः दुरन्त (दुःख से व्यतीत होने वाले) अनन्त काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो ।
१०. द्वीन्द्रिय-काय (तिर्यञ्च) में गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः 'संख्यात' काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम ) प्रमाद न करो ।
११. त्रीन्द्रिय-काय (तिर्यञ्च) में गया (जन्मा) हुआ जीव तो उत्कृष्टतः 'संख्यात' काल तक (वहीं, अनवरत मरते-जन्मते हुए) रह जाता है, (इसलिए) हे गौतम! क्षण भर का (भी तुम) प्रमाद न करो ।
अध्ययन-१०
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