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करने लगा। एक दासी उसकी सेवा में रहने लगी। आरम्भ में वह
ज्ञान
-क्षेत्र में आगे बढ़ा किन्तु बाद में दासी के प्रेम में पड़ कर वह ज्ञान से विरक्त हो गया। एक उत्सव में भाग लेने के लिये दासी ने उस से धन की मांग की और उपाय बताया कि यहां का राजा नित्य प्रति प्रातः सर्वप्रथम आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मण को दो माशा सोना देता है। कपिल सर्वप्रथम पहुंचने के लिये अर्द्धरात्रि में ही चल पड़ा । प्रहरियों ने उसे चोर समझ कर पकड़ लिया। राजा के सम्मुख पेश किया। कपिल ने सब सत्य कह दिया। तब राजा ने उसे निर्दोष समझा। उसे मनचाही सम्पत्ति मांगने की छूट भी दी । राजा से विचार करने का समय लेकर कपिल सोचने लगा-मैं क्या मांगू? उसके मन की मांग बढ़ती गई। बढ़ते-बढ़ते वह पूरा साम्राज्य मांगने तक जा पहुंची। तभी उसने अनुभव किया कि वह उपकारी का भी अपकार करने पर तुला है। धिक्कार है उसे। अंतर्नेत्रों से स्वयं को देखते-देखते कपिल को वहीं केवल ज्ञान हो गया।
देव-दुन्दुभियां बज उठीं। राजा यह देख मोक्ष-मार्ग यात्री मुनि बन गया। कपिल केवली ने व्यापक धर्म-प्रभावना करते हुए अपना और दूसरों का उद्धार किया। सचमुच ! मनुष्य अपनी वास्तविकता पहचान कर सम्यक् पथ पर अग्रसर हो जाये तो परम सार्थकता तक भी पहुंच सकता है। (अध्ययन - 8)
सम्यक् बोध
मिथिला नगरी के राजा थे-नमि। वे दाहज्वर से आक्रान्त हो गये। छह माह तक दाहज्वर से पीड़ित मिथिलानरेश नमि को अन्ततः चिकित्सकों ने देह पर गोशीर्ष चन्दन-लेप करने का परामर्श दिया। राजा के लिये रानियां स्वयं चन्दन घिसने लगीं। उनके कंगन बजने लगे। यह शोर राजा को असह्य हो गया। राजा के मना करने पर रानियों ने सौभाग्य-सूचक एक-एक कंगन रख कर शेष सब उतार दिये। शोर बन्द होने का कारण राजा को ज्ञात हुआ तो सोचा- 'जहां एक है, वहां न कोई पीड़ा है, न कोई शोर । शान्ति एक में ही है। आत्मा एकाकी रहे तो सभी पीड़ायें शान्त हों।' इस विचार से राजा स्वयं-संबुद्ध हुए।
परिशिष्ट
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