Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 901
________________ CED उत्तराध्ययन सूत्र : सूक्ति कोष अज्ञान : अदीनता अनासक्ति : अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई। थंभा कोहा पमाएणं, रोगोणाऽऽलस्सएणय।। ११/३ अहंकार, क्रोध, प्रमाद (विषयासक्ति), रोग और आलस्य-इन पांच कारणों से व्यक्ति शिक्षा (ज्ञान) प्राप्त नहीं कर सकता। आसुरीयं दिसं बाला गच्छंति अवसा तम। -७/७० अज्ञानी जीव-विवश हुए अंधकाराच्छन्न आसुरीगति को प्राप्त होते हैं। अदीणमणसो चरे। -२/३ अदीनभाव से जीवनयापन करना चाहिए। जहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहिं, तं वयं बम माहणं।।। २५/२७ ब्राह्मण वही है जो संसार में रह कर भी काम-भोगों से निर्लिप्त रहता है। जैसे कमल, जल में रहकर भी उससे लिप्त नहीं होता। विरत्ता हु न लग्गति, जहा से सुक्कगोलए। -२५/४३ मिट्टी के सूखे गोले के समान विरक्त साधक कहीं भी चिपकता नहीं है, अर्थात् आसक्त नहीं होता। धणेण किं धम्मधुराहिगारे। -१४/१७ धर्म की धुरा को खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता है? वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्था। -४/५ प्रमत्त मनुष्य धन के द्वारा अपनी रक्षा नहीं कर सकता, न इस लोक में, न परलोक में। न संतसंति मरणंते, सीलवन्ता बहुस्सुया। -५/२६ ज्ञानी और सदाचारी आत्माएं मरणकाल में भी त्रस्त (भयाक्रांत) नहीं होती। अपरिग्रह अभय परिशिष्ट ८७१

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