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सुव्रती
स्वयं-जेता :
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स्वाध्याय :
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भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ।।
-५/२२
भिक्षु हो या गृहस्थ, जो सुव्रती है वह देवगति प्राप्त करता है। जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ।। भयंकर युद्ध में लाखों दुर्दान्त शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपने आपको जीत लेना ही बड़ी विजय है।
-६/३४
सव्वं अप्पे जिए जियं ।
-६/३६ एक अपने (विकारों) को जीत लेने पर सभी को जीत लिया जाता है।
-२६/१८
सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ । स्वाध्याय से ज्ञानावरण (ज्ञान को आच्छादित करने वाले) कर्म का क्षय होता है।
-२६/१०
सज्झाएवा निउत्तेण, सव्वदुक्खविमोक्खणे। स्वाध्याय करते रहने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है।
-२६/३७
सज्झायं च तओ कुज्जा, सव्वभावविभावणं । स्वाध्याय सब भावों (विषयों) का प्रकाश करने वाला है।
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उत्तराध्ययन सूत्र