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________________ OXEXE> सुव्रती स्वयं-जेता : 00 स्वाध्याय : " ८८२ भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ।। -५/२२ भिक्षु हो या गृहस्थ, जो सुव्रती है वह देवगति प्राप्त करता है। जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ।। भयंकर युद्ध में लाखों दुर्दान्त शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपने आपको जीत लेना ही बड़ी विजय है। -६/३४ सव्वं अप्पे जिए जियं । -६/३६ एक अपने (विकारों) को जीत लेने पर सभी को जीत लिया जाता है। -२६/१८ सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ । स्वाध्याय से ज्ञानावरण (ज्ञान को आच्छादित करने वाले) कर्म का क्षय होता है। -२६/१० सज्झाएवा निउत्तेण, सव्वदुक्खविमोक्खणे। स्वाध्याय करते रहने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है। -२६/३७ सज्झायं च तओ कुज्जा, सव्वभावविभावणं । स्वाध्याय सब भावों (विषयों) का प्रकाश करने वाला है। VPS S ৫ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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