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________________ संतोष समभाव समय सुव्रती : परिशिष्ट : सम्यक्त्व CO 00 : MTOTAL भासियव्वं हियं सच्चं । सदा हितकारी सत्य वचन बोलना चाहिये। लोभविजएणं संतोसं जणयई । लोभ को जीत लेने से संतोष की प्राप्ति होती है। सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । -३२/४२ शब्द आदि विषयों में अतृप्त और परिग्रह में आसक्त रहने वाला आत्मा कभी संतोष को प्राप्त नहीं होता। मेति भूएसु कप्पए । समस्त प्राणियों पर मित्रता का भाव रखना चाहिए। - १६/२७ पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । -२६/७० प्रिय हो या अप्रिय, सब को समभाव से सहन करना चाहिए। -६/२ -२६/७० काले कालं समायरे । समयोचित कर्त्तव्य समय पर ही करना चाहिए। समो य जो तेसु स वीयरागो । -३२/६१ जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दादि विषयों में सम रहता है, वह वीतराग है। गिहिवासे वि सुव्वए । धर्मशिक्षा संपन्न गृहस्थ गृहवास में भी सुव्रती है। - १/३१ - १४/२५ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जन्ति राइओ ।। जो रात्रियां बीत जाती हैं, वे पुनः लौट कर नहीं आतीं। किन्तु जो धर्म का आचरण करता रहता है, उसकी रात्रियां सफल हो जाती हैं। नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं । सम्यग्दर्शन के अभाव में चारित्र सम्यक् नहीं हो सकता। -२८/२६ -५/२४ 559 5
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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