Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 904
________________ 1-copur Laye EXENCYCL काम-भोग : "" क्रोध "" 22 "" क्षमा " चारित्र तप जागृति 0: 40 ८७४ 00 -१४/१३ खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा । संसार के विषय-भोग क्षण भर के लिए सुख देते हैं, किन्तु वे चिरकाल तक दुःखदायी होते हैं। -३२/१६ सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स, कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्ख । देवताओं सहित समग्र संसार में जो भी दुःख हैं, वे सब कामासक्ति के कारण ही हैं। अप्पाणं पि न कोवए । अपने आप पर भी कभी क्रोध न करो। अहे वयइ कोहेणं । क्रोध से आत्मा नीचे गिरता है। न हु मुणी कोवपरा हवन्ति । ऋषि-मुनि कभी किसी पर क्रोध नहीं करते। कोहविजएणं खंतिं जणयई । क्रोध को जीत लेने से क्षमाभाव जागृत होता है। खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ । क्षमापना से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है। सरिसो होइ बालाणं । बुरे के साथ बुरा होना, अज्ञानता है। -१/४० -६/५४ -१२/३१ - २१/६७ -२६/१७ -२/२४ -४/७ सुत्तेसु या वि पडिबुद्धजीवी । प्रबुद्ध साधक सोये हुए (प्रमत्त मनुष्यों) के बीच भी सदा जागृत अप्रमत्त रहते हैं। -१६/३८ असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो। तप का आचरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है। भवकोडी-संचियं कम्मं, तवसा निज्जरिज्जइ । -३/६ करोड़ों भवों में संचित कर्म तप के द्वारा क्षीण हो जाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र

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