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काम-भोग :
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क्रोध
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क्षमा
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चारित्र
तप
जागृति 0:
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८७४
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-१४/१३
खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा । संसार के विषय-भोग क्षण भर के लिए सुख देते हैं, किन्तु वे चिरकाल तक दुःखदायी होते हैं।
-३२/१६
सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स, कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्ख । देवताओं सहित समग्र संसार में जो भी दुःख हैं, वे सब कामासक्ति के कारण ही हैं।
अप्पाणं पि न कोवए ।
अपने आप पर भी कभी क्रोध न करो।
अहे वयइ कोहेणं ।
क्रोध से आत्मा नीचे गिरता है।
न हु मुणी कोवपरा हवन्ति । ऋषि-मुनि कभी किसी पर क्रोध नहीं करते।
कोहविजएणं खंतिं जणयई । क्रोध को जीत लेने से क्षमाभाव जागृत होता है।
खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ । क्षमापना से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है। सरिसो होइ बालाणं । बुरे के साथ बुरा होना, अज्ञानता है।
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-६/५४
-१२/३१
- २१/६७
-२६/१७
-२/२४
-४/७
सुत्तेसु या वि पडिबुद्धजीवी । प्रबुद्ध साधक सोये हुए (प्रमत्त मनुष्यों) के बीच भी सदा जागृत अप्रमत्त रहते हैं।
-१६/३८
असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो। तप का आचरण तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है।
भवकोडी-संचियं कम्मं, तवसा निज्जरिज्जइ । -३/६ करोड़ों भवों में संचित कर्म तप के द्वारा क्षीण हो जाते हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र