Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 892
________________ दी। विष्णुकुमार मुनि ने अपनी देह एक लाख योजन लम्बी-चौड़ी बना कर एक पांव चूलहेम पर्वत तथा दूसरा जम्बू-द्वीप की जगती पर रख कर तीसरा कदम रखने की जगह मांगी। नमुचि भयभीत हो कर छिप गया। श्रमणों पर आई विपत्ति दूर हुई। महापद्म चक्रवर्ती ने नमुचि को देशनिकाला दिया। लम्बे समय तक शासन कर सम्राट को मुनि प्रवचन से वैराग्य हुआ। महान् ऋद्धि-समृद्धि छोड़ कर दीक्षा ली। दस हज़ार वर्ष तक संयम पाला। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो उन्होंने परम पद को प्राप्त किया। (अध्ययन-18/41) हरिषेण चक्रवर्ती काम्पिल्यपुर के महाराजा महाहरि व महारानी मेरा के यहां हरिषेण चक्रवर्ती जन्मे। पिता के प्रव्रजित होने पर वे राजा बने। छह खण्डों पर आधिपत्य स्थापित किया। दसवें चक्रवर्ती सम्राट रूप में अनेक वर्षों तक विपुल ऐश्वर्य भोगा। अंतत: विरक्ति हुई। राज-पाट छोड़ मुनि बने। संयम-साधना की। कैवल्य पाया। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। (अध्ययन-18/42) जय चक्रवर्ती ग्यारहवें चक्रवर्ती जय, राजगृह के राजा समुद्रविजय व रानी वप्रा के यहां जन्मे। राजा बनकर छह खण्डों पर अखण्ड शासन स्थापित किया। देव-दुर्लभ सुख भोगे। प्रतिबोधित होकर श्रमण-धर्म अंगीकार किया। एक हजार अन्य राजा भी संयम पथ पर उनके साथ अग्रसर हुए। श्रमण श्रेष्ठ जय ने साधना-पराक्रम से कैवल्य पाया। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर वे परम पद पर आसीन हुए। (अध्ययन-18/43) दशार्णभद्र राजा दशार्णपुर-अधिपति महाराज दशार्णभद्र भगवान् महावीर के अनन्य उपासक थे। एक बार प्रभु दशार्णपुर पधारे तो अभूतपूर्व तथा अद्वितीय ऐश्वर्य के साथ प्रभु-दर्शन की इच्छा राजा के मन में जागी। वे अपने समस्त सैन्य, मंत्री, सभासद, श्री के बल के साथ प्रभु-दर्शन करने गये। ८६२ उत्तराध्ययन सूत्र

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