Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 895
________________ >MLFTAA अभिभूत कर दिया। महोत्सव-समाप्ति के कुछ दिन बाद उन्होंने उसी इन्द्रध्वज को एक ठूंठ के रूप में बालकों द्वारा घसीटे जाते देखा। नश्वरता पर चिंतन करते हुए वे विरक्त हुए। राज-पाट छोड़ आर्हती दीक्षा ली। कठोर-संयम-साधना की। कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर वे परम सार्थकता पा गये। ( अध्ययन- 18/46) प्रत्येकबुद्ध नग्गति सिंहरथ महाराजा दृढ़ सिंह के पुत्र थे। उनका विवाह वैताढ्य तोरणपुर के राजा दृढ़शक्ति व रानी गुणमाला की पुत्री कनकमाला से हुआ। पूर्व-भवों में भी वे पति-पत्नी थे। कनकमाला विवाहोपरान्त भी वैताढ्य पर्वत से राग के कारण वहीं रहीं। राजा सिंहरथ द्वारा नित्य वहां जाने के कारण उनका नाम नग्गति पड़ा। वैताढ्य पर्वत पर सुन्दर नगर बसा वे सुखपूर्वक वहीं रहने लगे। एक दिन वन-विहार करते हुए उन्होंने सुन्दर आम्र-वृक्ष का एक पत्ता तोड़ा। उनके साथ चल रहे सभी लोगों ने यही किया। वापसी में उन्होंने उस मनोरम वृक्ष को ठूंठ रूप में पाया। कारण जाना। जगत् की नश्वरता अनुभव की। समस्त बन्धन तोड़ दीक्षा ली। जप-तप-संयम-साधना की। केवली हुए। अन्त में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। (अध्ययन- 18/46) उदायन राजा सिन्धु सौवीर देश की राजधानी वीतभय नगर के धार्मिक व न्यायप्रिय सम्राट उदायन की पटरानी प्रभावती थीं। वे गणाध्यक्ष महाराज चेटक की पुत्री थीं। उज्जयिनी नरेश चण्डप्रद्योत द्वारा अपनी दासी सुवर्णगुलिका का अपहरण करने पर उदायन राजा ने उज्जयिनी पर आक्रमण कर चण्डप्रद्योत को बन्दी बना उसके माथे पर 'दासीपति' अंकित करवा दिया। महापर्व संवत्सरी के दिन उन्होंने सभी जीवों के साथ चण्डप्रद्योत से भी क्षमा मांगी। उसने उस क्षमा को नाटक कहा। राजा उदायन ने उसे मुक्त कर उसका राज्य लौटा दिया। क्षमावीर उदायन ने भगवान् महावीर के दर्शन कर कृतकृत्य होने की भावना की । भगवान् इसे जान वीतभयनगर पधारे। उनके दर्शन-प्रवचन से विरक्त हो परिशिष्ट ८६५ te

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