Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 896
________________ DADKE राजा ने दीक्षा ली। पुत्र को सत्ता-विष से बचाने के लिए भानजे केशी को राज्य दिया। केशी ने अन्याय व क्रूरता-पूर्ण शासन दिया। कालान्तर में मुनि उदायन वीतभयनगर पधारे तो उसके क्रूर आदेश से राजर्षि को कहीं ठहरने को स्थान न मिला। एक कुंभकार ने राजाज्ञा उल्लंघन कर स्थान दिया। केशी ने क्षमा का नाटक रच उन्हें राजोद्यान में आमंत्रित किया और विषमिश्रित भोजन बहराया। भयंकर उदरशूल होने पर महामुनि सब समझकर समभाव-लीन रहे। कर्म श्रृंखलायें टूटीं । केवलज्ञान केवल-दर्शन प्रकट हुआ। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होकर उन्होंने परम सार्थकता प्राप्त की। ( अध्ययन- 18/48) काशीराज नन्दन अठारहवें तीर्थंकर भगवान् अरनाथ के शासन-काल में वाराणसी नरेश अग्निशिख को रानी जयन्ती से नन्दन तथा रानी शेषवती से दत्त नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। नन्दन को बलदेव तथा दत्त को वासुदेव पद प्राप्त हुआ। वासुदेव दत्त के संसार से विदा होने पर इस काल के सातवें बलदेव नन्दन विरक्त हो श्रमण बने। साधना से कर्म-क्षय कर केवली हुए। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। ( अध्ययन- 18/49) विजय राजा भगवान् वासुपूज्य के शासन काल में सौराष्ट्र देश की द्वारिका नगरी के राजा ब्रह्मराज को रानी सुभद्रा से विजय तथा रानी उमा से द्विपृष्ठ नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। तारक नामक प्रतिवासुदेव को परास्त कर द्विपृष्ट ने वासुदेव तथा विजय ने बलदेव पद पाया। द्विपृष्ट से अतिशय स्नेह के कारण उन की मृत्यु के बाद इस काल के दूसरे बलदेव विजय का मन संसार में न लगा। सत्य समझ कर वे दीक्षित हुए। लम्बे समय तक शुद्ध संयम साधना से उन्होंने कैवल्य पाया। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बने। (अध्ययन- 18/50) राजर्षि महाबल भगवान् विमलनाथ के शासन काल में हस्तिनापुर नरेश बल व महारानी प्रभावती को सुन्दर व बुद्धिमान पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम নজট ८६६ उत्तराध्ययन सूत्र

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