Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 891
________________ LED भगवान् श्री अरनाथ चक्रवर्ती सातवें चक्रवर्ती सम्राट् श्री अरनाथ को जन्म देने का सौभाग्य हस्तिनापुर नरेश सुदर्शन व महारानी देवी को प्राप्त हुआ था। उनके गर्भ में आने पर चौदह महास्वप्नों के साथ-साथ रत्नमयी आरक को देखने पर महारानी ने पुत्र-नामकरण प्रस्तुत किया। राजा बनने पर अरनाथ ने सम्पूर्ण पृथ्वी को एक सूत्र में पिरोने का महती कार्य छह खण्डों पर स्वामित्व पाकर किया। अनेक वर्षों तक राज्य किया। लोकांतिक देवों की प्रार्थना पर वर्षीदान करते हुए संपूर्ण वैभव का सुख त्यागा। महाभिनिष्क्रमण कर संयम-पथ पर बढ़े। शिखर तक पहुंचे। कैवल्य पाया। धर्म-तीर्थ स्थापित किया। अनेक भव्य जीवों को भव-सागर से तारा। एक हज़ार श्रमणों के साथ सम्मेद शिखर पर नश्वर देह विसर्जित की। सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए। (अध्ययन-18/40) महापद्म चक्रवर्ती ईक्ष्वाकुवंशीय, हस्तिनापुर-नरेश पद्मोत्तर व महारानी ज्वाला ने चौदह महास्वप्न देख कर महापद्म को जन्म दिया। आचार्य धर्मघोष का प्रवचन सुन उनके बड़े भाई विष्णुकुमार व पिता, दोनों मुनि बन गये। मुनि विष्णुकुमार को कठोर साधना से अनेक लब्धियां प्राप्त हुईं। महापद्म ने राजा बन कर छह खण्डों पर शासन स्थापित किया। महापद्म चक्रवर्ती के शासन में सिंहबल नामक लुटेरे ने अशान्ति फैलायी थी, जिसे पकड़ा न जा सका। नमुचि नामक श्रमण-द्वेषी व्यक्ति ने उसे छल-बल से पकड़ लिया और सम्राट का विश्वास पात्र बना। पुरस्कार में सम्राट ने मंत्री-पद और एक मुहमांगा वचन प्रदान किया। एक बार महाश्रमण सुव्रताचार्य अपने शिष्यों सहित हस्तिनापुर पधारे। नमुचि ने सम्राट् से मुंहमांगे वचन के रूप में एक सप्ताह का शासन मांगा। शासक बन कर उसने सभी श्रमणों को अपनी राज्य-सीमा से निकल जाने या मृत्यु-दण्ड स्वीकार करने की आज्ञा दी। सात दिन की निर्धारित सीमा से पूर्व ही मुनि विष्णुकुमार लब्धि-बल से हस्तिनापुर पहुंचे। बहुत समझाने पर नमुचि ने तीन पग भूमि श्रमणों को परिशिष्ट ८६१

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