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२१२. जो कल्पातीत (वैमानिक) देव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं(१) ग्रैवेयक (वासी), और (२) अनुत्तर (विमानवासी)। उनमें ग्रैवेयक (देव) नौ प्रकार के होते हैं ।
२१३. (ग्रैवेयकों के भेद-) (१) अधस्तन-अधस्तन, (७) अधस्तन-मध् यम, (३) अधस्तन-उपरितन और (४) मध्यम-अधस्तन,
२१४. (५) मध्यम-मध्यम, (६) मध्यम-उपरितन, (७) उपरितन-अधस्तन (८) उपरितन-मध्यम,
२१५. और (६) उपरितन- उपरितन- ये (नौ प्रकार के) ग्रैवेयक देव हैं । (अनुत्तर देवों के पांच प्रकार-) (१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित,
२१६. और (५) सर्वार्थसिद्ध (ये) पांच प्रकार के अनुत्तर (विमानवासी) देव हैं। इस प्रकार वैमानिक देवों के अनेक प्रकार होते हैं ।
२१७. वे सभी (चतुर्विध देव) लोक के एक देश (भाग) में (ही अवस्थित ) कहे गये हैं। इसके बाद, (अब) मैं उनके चतुर्विध 'काल-विभाग' का कथन करूंगा ।
२१८.
(वे देव) 'सन्तति' (प्रवाह-परम्परा) की दृष्टि से अनादि और अनन्त हैं, (किन्तु एकत्व-वैयक्तिक) ‘स्थिति' की दृष्टि से सादि और सान्त (भी) हैं ।
अध्ययन- ३६
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