Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication
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मूल :
चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया। विययपक्खी य बोधवा, पक्खिणो य चउबिहा ।। १८८ ।। चर्मपक्षिणस्तु रोमपक्षिणश्च, तृतीयभेदः समुद्रपक्षिणः । विततपक्षिणश्च बोद्धव्याः, पक्षिणश्च चतुर्विधाः ।। १८८ ।।
संस्कृत :
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लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउब्विहं ।। १८६ ।। लोकैकदेशे ते सर्वे, न सर्वत्र व्याख्याताः । इतः कालविभागन्तु, तेषां वक्ष्यामि चतुर्विधम् ।। १८६ ।। संतई पप्प णाईया, अपज्जवसियावि य। ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ।। १६०।। सन्ततिं प्राप्यानादिकाः, अपर्यवसिता अपि च। स्थितिं प्रतीत्य सादिकाः, सपर्यवसिता अपि च ।। १६०।।
मूल :
संस्कृत :
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पलिओवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। १६१ ।। पल्योपमस्य भागः, असङ्ख्येयतमो भवेत् । आयुःस्थितिः खेचराणां, अन्तर्मुहूर्तं जघन्यका ।। १६१ ।। असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया। पुव्वकोडिपुहुत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ।। १६२ ।। असङ्ख्यभागः पल्योपमस्य, उत्कर्षेण तु साधिका । पूर्वकोटिपृथक्त्वेन, अन्तर्मुहूर्त जघन्यका ।। १६२ ।।
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८२२
उत्तराध्ययन सूत्र
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