Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 853
________________ १८८. (खेचर) पक्षियों के चार भेद जानने चाहिएं- (१) चर्म-पक्षी (चमड़ी की पांख वाले- चमगादड़ आदि), (२) रोम-पक्षी (रोंएं के पंखों वाले, हंस आदि), (३) समुद्ग-पक्षी (बन्द डिब्बे के आकार वाले व अविकसित पंखों वाले- जो मनुष्य-क्षेत्र के बाहर द्वीप-समुद्रों में प्राप्त होते हैं), तथा (४) वितत-पक्षी (सदैव खुले हुए विस्तृत पंखों वाले, जो मनुष्य-क्षेत्र के बाहर, द्वीप-समुद्रों में पाए जाते हैं)। १८६.वे सब (खेचर) (लोक में) सर्वत्र नहीं, अपितु लोक के एक देश (भाग) में (ही अवस्थित) हैं। इसके आगे (अब) मैं उन (खेचरों) के चतुर्विध 'काल-विभाग' (काल की दृष्टि से भेदों) का कथन करूंगा। १६०. (खेचर) 'सन्तति' (प्रवाह-परम्परा) की दृष्टि से अनादि और अनन्त हैं (किन्तु एकत्व-वैयक्तिक) स्थिति' की दृष्टि से सादि और सान्त (भी) हैं। १६१. खेचर (जीवों) की (एकभवीय) आयु-स्थिति उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की होती है। १६२. (खेचर जीवों की काय-स्थिति) उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग सहित 'पृथक्त्व' करोड़ 'पूर्व' की होती है (अर्थात् खेचर के रूप में जन्म लेकर, अधिक से अधिक एक करोड़ २ पूर्व प्रमाण वाले अन्य सात भव धारण कर, आठवें भव में पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण वाली आयु के युगलियों में खेचर रूप में ही उत्पन्न हो सकता है, उसके बाद वह खेचर न होकर देवगति प्राप्त करेगा), तथा जघन्यतः (काय-स्थिति तो) अन्तर्मुहूर्त की होती है। अध्ययन-३६ ८२३

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