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चौबीसवां अध्ययन :
प्रवचन-माता
१. आठ प्रवचन-माताएं हैं- समिति और गुप्ति । (ये) समितियां
पांच, तथा गुप्तियां तीन कही गई हैं।
ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान समिति, उच्चार समिति, (इन पांच समिति रूप प्रवचन माताओं के साथ) मनोगुप्ति (छठी), वचन गुप्ति (सातवीं) तथा काय गुप्ति आठवीं
(प्रवचन माता) है। ३. ये आठ समितियां' संक्षेप में वर्णित की गई हैं, (किन्तु यदि इनका
विस्तार करें तो) जिसमें जिनेन्द्र प्ररूपित द्वादश अंग रूप (समग्र) प्रवचन 'मात' (अर्थात् समाहित, अन्तर्भूत है, और इसी माता
के गर्भ से प्रसूत होता) है। ४. मुनि इन चार कारणों- आलम्बन, काल, मार्ग व यतना से
परिशुद्ध 'ईर्या' (समिति के अनुरूप) गमन करे ।
५. इनमें (ईर्या-समिति का) आलम्बन है- ज्ञान, दर्शन व चारित्र
(अर्थात् ज्ञान आदि पूर्वक ही ईर्या-गमन करना अपेक्षित है)। उसका काल है- दिन (अर्थात् रात में गमन नहीं करना चाहिए) और मार्ग है-उन्मार्ग का त्याग ।
१. प्रविचार (निवृत्ति), अप्रविचार (प्रवृत्ति) रूप से गुप्तियाँ दो प्रकार की हैं। प्रवृत्ति अंश से
गुप्तियों को भी समिति कहा जाता है।
अध्ययन-२४
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