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(सू.२६) (प्रश्न-) भन्ते! मन की एकाग्र संनिवेशना (संस्थापन) से जीव
क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) मन की एकाग्र-संनिवेशना से (जीव उन्मार्गगामी) चित्त (की
वृत्तियों) का निरोध (नियन्त्रण) करता है। (सू.२७) (प्रश्न-) भन्ते! (सावद्य योग-विरति कराने वाले सत्रह प्रकार
के) 'संयम' से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध
करता है? (उत्तर-) संयम से (वह कर्मों की) 'अनास्रवता' (संवर की स्थिति) को
या 'अनंहस्कता' (ज्ञानावरणीय आदि कर्म रूप पापों के
अभाव की स्थिति) को प्राप्त करता है। (सू.२८) (प्रश्न-) भन्ते! 'तप' से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल)
उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'तप' से (जीव) 'व्यवदान' (पूर्व-संचित कर्मों के क्षय या
___ आत्मिक विशुद्धि/निर्मलता को) प्राप्त करता है। (सू.२६) (प्रश्न-) भन्ते! 'व्यवदान' (पूर्व संचित कर्मों के क्षय से प्राप्त
आत्मिक विशुद्धि) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल)
उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'व्यवदान' से (वह जीव) 'अक्रिया' (मन-वचन-काय की
प्रवृत्तियों से निवृत्ति) को प्राप्त करता है। अक्रिया (शुक्ल ध्यान के चतुर्थ सोपान की अवस्था कर) के अनन्तर सिद्ध (कृतकृत्य), बुद्ध (केवलज्ञानी), मुक्त व निर्वाण-प्राप्त होता है और समस्त दुःखों का अन्त करता (हुआ, अव्याबाध
अनन्त सुख को प्राप्त करता) है। (सू.३०) (प्रश्न-) भन्ते! 'सुख-शात' (सांसारिक विषय सुखों
के प्रति उत्सुकता व आसक्ति के त्याग) से या 'सुखशायिता' (आध्यात्मिक सुख में तल्लीनता प्राप्त करने) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है?
अध्ययन-२६
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