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(सू.४५) (प्रश्न-) भन्ते! 'सर्वगुण-सम्पन्नता' (आत्मा के परिपूर्ण
स्वभाव के सूचक, अनन्त ज्ञान, क्षायिक सम्यक्त्व, यथाख्यात चरित्र - इन तीनों गुणों की पूर्णता के लाभ) से जीव क्या
(गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'सर्वगुण-सम्पन्नता' से (जीव) 'अपुनरावृत्ति' (संसार में पुनः
लौटने की स्थिति से मुक्ति) को प्राप्त कर लेता है। 'अपुनरावृत्ति' को प्राप्त जीव शारीरिक व मानसिक दुःखों का
(पुनः) भागी (भोगने वाला) नहीं होता। (सू.४६) (प्रश्न-) भन्ते! 'वीतरागता' (राग-द्वेष रहित स्थिति) से जीव
क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'वीतरागता' से (जीव पुत्र आदि में होने वाले) स्नेह के
अनुबन्धनों (उत्तरोत्तर बन्धन-परम्परा) को तथा (धन आदि के प्रति होने वाली) तृष्णा के अनुबन्धनों को विच्छिन्न कर देता है। (वह) मनोज्ञ शब्द-स्पर्श-रूप-रस व गन्ध से तथा सचित्त, अचित्त व सचित्त-अचित्त (मिश्रित) द्रव्यों के प्रति
वैराग्य-(भावना) से युक्त (अवश्य ही) हो जाता है। (सू.४७) (प्रश्न-) भन्ते! 'क्षान्ति' (प्रतिकार की सामर्थ्य होते हुए भी
क्षमा-भाव, सहिष्णुता व क्रोध-जय) से जीव क्या (गुण या
विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'क्षान्ति' से (जीव) परीषहों को जीत (लेने की सामर्थ्य प्राप्त
कर) लेता है। (सू.४८) (प्रश्न-) भन्ते! 'मुक्ति' (निर्लोभवृत्ति) से जीव क्या (गुण या
विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'मुक्ति' से जीव अकिंचनता (मोह-ममत्व की त्याग-वृत्ति)
प्राप्त करता है। 'अकिंचन' जीव अर्थलोभी (चोर, तस्कर आदि) व्यक्तियों का अप्रार्थनीय (उनके द्वारा उपेक्षणीय होता हुआ, फलस्वरूप उनकी ओर से संभावित कष्टों से मुक्त) होता है।
अध्ययन-२६
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