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दूसरों का पाठ मिला देना), (२२) हीनाक्षर, (२३) अत्यक्षर, (२४) पदहीन, (२५) विनयहीन, (२६) योगहीन, (२७) बोषहीन, (२८) सुष्ठुदत्त (योग्यता से अधिक ज्ञान देना ), (२६) दुष्टुप्रतीक्षित (ज्ञान को सम्यक्तया ग्रहण न करना), (३०) अकाल में स्वाध्याय, (३१) स्वाध्याय काल में स्वाध्याय न करना, (३२) अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय, (३३) स्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय न करना) ।
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प्रकारान्तर से भी आशातना (अविनयपूर्ण व्यवहार) के तैंतीस प्रकार वर्णित किये गए हैं- (१) गुरु या दीक्षा- ज्येष्ठ व्यक्ति के आगे-आगे चलना, (२) उनके बराबर (समश्रेणी में) चलना, (३) उनसे सटकर चलना, (४) गुरु या दीक्षा ज्येष्ठ के आगे खड़े रहना, (५) उनके बराबर (समश्रेणी में) खड़े रहना, (६) उनसे सटकर खड़े रहना, (७) गुरु या दीक्षा ज्येष्ठ के आगे बैठना, (८) उनके समश्रेणी में बराबर बैठना, (६) उनसे सटकर बैठना, (१०) बड़े साधु से पहले (यदि एक ही जलपात्र हो तो) आचमन लेना, (११) किसी स्थान में आकर, उनसे पहले ही गमनागमन की आलोचना लेना, (१२) बड़े साधु को जिसके साथ बात करनी हो, उससे स्वयं पहले बात करना, (१३) रात्रि में जागते हुए भी उत्तर न देना, (१४), भिक्षा लाकर पहले छोटे साधु के पास भिक्षा सम्बन्धी आलोचना करना, फिर बड़े साधु के पास आलोचना करना, (१५) लाई हुई भिक्षा को पहले छोटे साधु के पास दिखाना, फिर बड़े साधु को दिखाना, (१६) भिक्षाप्राप्त आहार में से बड़े साधु के बिना पूछे ही अपने प्रिय साधुओं को प्रचुर आहार देना । (१७) लाई हुई भिक्षा के आहार के लिए पहले बड़े साधु को आमंत्रित किये बिना ही छोटे साधु को आमंत्रित करना, (१८) बड़े साधुओं के साथ भोजन करते हुए, अधीरतापूर्वक सरस आहार को स्वयं करने की शीघ्रता (उतावलापन) करना, (१६) बड़े साधु द्वारा बुलाये जाने पर उनकी अनसुनी कर देना, (२०) बुलाये जाने पर बैठे-बैठे ही उत्तर दे देना । (२१) बड़ों को अनादरपूर्वक सम्बोधन के साथ बुलाना, (२२) उनसे अनादर के साथ बोलना, (२३) बड़े साधु द्वारा किसी काम को करने के लिए कहने पर यह कहना कि तुम ही कर लो या उनके सामने जोर जोर से बोलना, (२४) बड़े साधु द्वारा बोला गया कोई शब्द पकड़ कर, उसकी अवज्ञा करना, या उनके आसन पर उनकी आज्ञा बिना बैठ जाना, (२५) बड़े साधु व्याख्यान कर रहे हों तभी बीच में ही बोल उठना कि 'ऐसा नहीं ऐसा है' या उनके व्याख्यान की हीनता प्रदर्शित करने के लिए स्वयं उस विषय की विस्तृत व्याख्या करना, (२६) बड़े साधु के व्याख्यान में कह देना कि आप भूल रहे हैं, (२७) बड़े साधु के व्याख्यान में अन्यमनस्क या गुमसुम रहना, (२८) बड़े साधु के व्याख्यान देते रहते ही, बीच में ही परिषद् को भंग कर देना, (२६) बड़े साधु के व्याख्यान करते समय ही कथा का विच्छेद करना, (३०) बड़े साधु के व्याख्यान के बीच ही स्वयं व्याख्यान करने लगना, (३१) बड़े साधुओं के उपकरणों को पैर लगने पर विनयपूर्वक क्षमायाचना न करना, (३२) बड़े साधु के बिछौने पर खड़े रहना, बैठना या सोना, (३३) बड़े साधु की अपेक्षा ऊंचे या बराबर के आसन पर खड़े रहना, बैठना या सोना ।
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अध्ययन- ३१
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