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अध्ययन-सार :
दु:खों का अन्त करने वाला गृहवास का परित्यागी संयमी हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, इच्छा व लोभ का त्याग करे। सुसज्जित व काम- राग-उद्दीपक निवास-स्थान की आकांक्षा तक न करे। विविक्त शयनासन का उपयोग करे। गृह-निर्माण न करे, न कराये। भक्तपान न पकाये, न पकवाये। अग्नि जैसे अद्वितीय विनाशक शस्त्र से दूर रहे। हिंसा को जीवन में कोई स्थान न दे। सोने व मिट्टी को समान समझे। क्रय-विक्रय से विरक्त रहे। भिक्षावृत्ति ही सुखद है, यह माने और इसके अनुरूप आचरण करे। रस-परित्याग कर शरीर-निर्वाह हेतु खाये-पीये। अपनी मान-प्रतिष्ठा, वन्दना-पूजा की इच्छा भी न करे। शुक्ल ध्यान में रमण करे। देह का ममत्व त्याग दे। मृत्यु-समय आहार-परित्याग करे।
ऐसा श्रमण केवल ज्ञान-सम्पन्न हो सिद्ध गति प्राप्त करता है।
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उत्तराध्ययन सूत्र