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१५७. तथा (४) पंकप्रभा (के निवासी), (५) धूमप्रभा (के निवासी), (६)
तमःप्रभा (के निवासी), और (७) महातमःप्रभा- तमस्तमप्रभा (के निवासी) - इस प्रकार सात प्रकार के नारकी कहे गये हैं।
१५८. वे सब (नारकी) लोक के एक देश (भाग) में (ही अवस्थित) कहे
गये हैं। इसके बाद (अब) में उनके चार प्रकार के काल-विभाग (काल की अपेक्षा से भेदों) का कथन करूंगा।
१५६. (वे सब नारकी) 'सन्तति' (प्रवाह-परम्परा) की दृष्टि से अनादि
और अनन्त हैं (किन्तु एकत्व-वैयक्तिक) 'स्थिति' की दृष्टि से सादि और सान्त (भी) हैं।
१६०.प्रथम (रत्नप्रभा पृथ्वी) में (रहने वाले नारकियों की) आयु-स्थिति
(एकभवीय जीवन काल-मर्यादा) उत्कृष्टतः एक सागरोपम की, तथा जघन्यतः दस हजार वर्षों की कही गई है।
१६१. दूसरी (शर्कराप्रभा पृथ्वी) में (रहने वाले नारकियों की)
'आयुस्थिति' (एकभवीय जीवन की काल-मर्यादा) उत्कृष्टतः तीन सागरोपम की, तथा जघन्यतः एक सागरोपम की होती है।
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१६२. तृतीय (बालुकाप्रभा पृथ्वी) में (रहने वाले नारकियों की)
आयुस्थिति (एक भवीय जीवन की काल-मर्यादा) उत्कृष्टतः सात सागरोपम की, तथा जघन्यतः तीन सागरोपम की होती है।
१६३. चौथी (पंकप्रभा पृथ्वी) में (रहने वाले नारकियों की)
'आयुस्थिति' उत्कृष्टतः दस सागरोपम की, तथा जघन्यतः सात सागरोपम की होती है।
अध्ययन-३६
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