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(सभी लोग जहां आते-जाते हों व व्यापार करते हों), मण्डप (ढाई कोस तक कोई ग्राम न हो ऐसी बस्ती), संबाध (पर्वत के मध्य बसा हुआ या चारों वर्णों के लोगों की प्रचुर जनों की बस्ती),
१७. आश्रमपद (आश्रम जैसा बसा स्थान), विहार (मठ या देव-मन्दिर), सन्निवेश (मुहल्ला, पड़ाव, या यात्री विश्राम-स्थान) समाज (सभा या परिषद् के अधिकार क्षेत्र का स्थान), घोष (ग्वालों की बस्ती), स्थली (ऊँचे रेती के टीले पर बसे स्थल) सेना का शिविर, सार्थ (व्यापारी यात्रियों के पड़ाव स्थल), संवर्त (संकट ग्रस्त, शरणार्थी लोगों की बस्ती), कोट (किला, या प्राकार आदि),
१८. वाट (बाड़ा, मुहल्ला या चारों ओर कांटों से घिरा स्थान), रथ्या (गली) और घर- इन (क्षेत्रों) में तथा इसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में 'इतनी व अमुक सीमा तक ही' (भिक्षा लूंगा- इस प्रकार भिक्षा हेतु क्षेत्र मर्यादा निर्धारित करने) का 'कल्प' करता है। (भिक्षाचर्या की क्षेत्र मर्यादा करता है) इस प्रकार यह 'क्षेत्र की अपेक्षा से 'अवमौदर्य' होगा ।
१६. अथवा ('क्षेत्र से ऊनोदरी' के प्रकारान्तर से अन्य छः भेद भी हैं-) १. पेटा (चतुष्कोण सन्दूक जैसे क्षेत्र से ही भिक्षा लेना), २. अर्द्धपेटा (केवल दो श्रेणियों वाले घर-मुहल्ला आदि से ही भिक्षा लेना), ३. गोमूत्रिका (टेढ़े-मेढ़े भ्रमण करना पड़े-ऐसे घर-मुहल्ले आदि से ही भिक्षा लेना), ४. पतंगवीथिका (पतंग की तरह उड़ते हुए, कभी एक घर से भिक्षा लेकर, फिर ५-६ घर छोड़ कर भिक्षा लेना आदि), ५. शम्बूकावर्ता (शंखावर्त की तरह घूम-घूम कर, या गांव के बाहरी भाग से भिक्षा लेकर अन्दर की ओर जाना या अन्दर से भिक्षा लेकर बाहर की ओर जाना), ६. 'आयतं गत्वा प्रत्यागता' (पहले गली के एक छोर से दूसरे छोर तक चले जाना, और लौटते भिक्षा लेना, या एक ही पंक्ति से आहार लेना, या जाते समय एक गली की पंक्ति से और आते समय दूसरी पंक्ति से आहार लेना)यह छठा 'क्षेत्र की अपेक्षा से ऊनोदरी तप' है ।
अध्ययन-३०
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DIODICAT