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अट्ठाईसवां अध्ययन :
मोक्षमार्गगति
१. (सम्यक्) ज्ञान आदि चार कारणों से युक्त, ज्ञान-दर्शन लक्षणों
वाली (अर्थात् मूलतः 'सम्यक् ज्ञान-दर्शन' की प्राप्ति के बाद अवश्य प्राप्त होने वाली या सामान्य - विशेषात्मक) जिनेन्द्र निरूपित यथार्थ मोक्ष - मार्ग की (लक्ष्यभूत 'सिद्ध' नामक) गति
को सुनें। २. वरदर्शी (सम्यग्द्रष्टा व सर्वज्ञ) जिनेन्द्रों ने सम्यक् ज्ञान,
सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र तथा सम्यक् तप (इन चारों का समुदित/समन्वित जो रूप है) इसको (मोक्ष का) मार्ग बताया है।
३. (सम्यक्) ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इस (चतुष्ट्य - रूप
वाले) मार्ग का अनुसरण करने वाले जीव सद्गति (मुक्ति) में (ही) जाते हैं।
४. उनमें ज्ञान पांच प्रकार का है- श्रुतज्ञान', आभिनिबोधिक (मति),
तीसरा अवधि - ज्ञान, (चौथा) मनःपर्यय ज्ञान, तथा (पांचवां) केवल ज्ञान।
१.
जैनागमों में ज्ञान के ५ भेद वर्णित किए हैं, उनमें प्रथम आभिनिबोधिक ज्ञान है। प्रस्तुत गाथा में इसे द्वितीय स्थान पर रखा है। इसका कारण यह है- श्रुतज्ञान से ही शेष चार ज्ञानों का स्वरूप बोध होता है। अतः यहां पर इस दृष्टि से श्रुत ज्ञान को प्रथम रखा है। मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान ये दोनों लब्धि की दृष्टि से अन्योन्याश्रित हैं। इनमें प्रथम और द्वितीय का कोई प्रश्न ही नहीं होता है।
अध्ययन-२८