________________
३४. तप के दो भेद बताए गए हैं- १. बाह्य तप और २. आभ्यन्तर
तप। (इनमें) बाह्य तप छः प्रकार का, इसी तरह आभ्यन्तर तप (भी छः प्रकार का) कहा गया है।
३५. (आत्मा) ज्ञान से (जीव आदि) भावों (पदार्थों) को जानता है,
दर्शन से श्रद्धान करता है, चारित्र से (कर्म-आस्रव का) निरोध करता है, और तप से विशुद्ध होता है।
३६. महर्षि समस्त दुःखों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए संयम व तप
से पूर्व कर्मों का क्षय करके (अपने लक्ष्य- मुक्ति व सिद्धि के
ओर) प्रस्थान कर जाते हैं। (पुनः नहीं लौटते ।) -ऐसा मैं कहता हूँ।
00
५४७