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१२. यतना-पूर्वक 'यति' प्रथम एषणा (गवेषणा) में उद्गम व उत्पादन
(नामक १६-१६ दोषों) का, द्वितीय एषणा (ग्रहण-एषणा) में एषणा (सम्बन्धी शंकित आदि १० दोषों का) और परिभोग (एषणा) में संयोजना, अप्रमाण, अंगार-धूम, कारण-इन चार
(दोषों) का शोधन करे (अर्थात् इन दोषों को न आने दे)। १३. (आदान-निक्षेप समिति में अपेक्षित यह है) ओघ-उपधि (सामान्य
व नित्य-ग्राह्य उपकरण) तथा औपग्रहिक (विशेष व कारणवश ग्राह्य उपकरण) दण्डादि इन दोनों प्रकार के उपकरणों, को लेते (या उठाते) समय, तथा रखते समय इस (आगे निर्दिष्ट की जाने
वाली) विधि का प्रयोग करे। १४. (उक्त) समिति से युक्त ‘यति' यतना - पूर्वक दोनों प्रकार के
उपकरणों का आंखों से देखकर ‘प्रतिलेखन' करे, (रजोहरण आदि से) प्रमार्जन करे और (तब उनका) ग्रहण व निक्षेप करे
(ग्रहण करे या उठावे और रखे या विसर्जित करे)। १५. (परिष्ठापना-समिति में अपेक्षित यह है) उच्चार (मल), प्रस्रवण
(मूत्र), श्लेष्म (कफ) सिंघानक (नाक का मैल), शरीर का मैल, (बचा हुआ) आहार, उपधि (जीर्ण आदि वस्त्र उपकरण), शरीर (मृत आदि का शव) या इसी तरह के दूसरे (परिष्ठापना योग्य) पदार्थ (का उपयुक्त स्थण्डिल भूमि में यतना-पूर्वक विसर्जन या
परिष्ठापना करे)। १६. (परिष्ठापना स्थल का स्वरूप चार प्रकार का कहा है-) १.
अनापात-असंलोक (स्वपक्ष व पर-पक्ष के लोगों का आवागमन न हो, साथ ही किसी व्यक्ति की दृष्टि नहीं पड़ रही हो) २. अनापात-संलोक (लोगों का आवागमन तो न हो, किन्तु कोई देख रहा हो) ३. आपात-असंलोक (लोगों का आवागमन हो, किन्तु किसी व्यक्ति की दृष्टि नहीं पड़ रही हो।) ४. आपात-संलोक (लोगों का आवागमन भी हो तथा लोगों पर दृष्टि पड़ रही हो।)
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MAYA
अध्ययन-२४
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