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पच्चीसवां अध्ययन :
यज्ञीय
१. ब्राह्मण कुल में उत्पन्न ‘यम - यज्ञ' (हिंसामय यज्ञ) के -यायाजी'
प्रतिदिन यज्ञ करने वाले 'जयघोष' -इस नाम के (एक) महायशस्वी ब्राह्मण थे।
२. इन्द्रिय-समूह के निग्रह करने वाले / (मुक्ति के रत्नत्रय रूप) मार्ग
के पथिक ‘महामुनि' (होकर वे) एक गांव से दूसरे गांव तक विचरण करते हुए (एक बार) वाराणसी नगरी में पहुंचे।
३. वाराणसी (नगरी) के बाहर (उस) मनोरम उद्यान में जहां प्रासुक
(निर्जीव, निर्दोष) शय्या (निवास-स्थान) एवं (प्रासुक) संस्तारक (तृण-आसन आदि उपलब्ध) थे, (वहां) ठहर गए ।
४. तदनन्तर उस समय, उस नगरी (वाराणसी) में वेदों का ज्ञाता
(तथा जयघोष मुनि का गृहस्थपक्षीय सहोदर भ्राता) विजयघोष नाम का (एक) ब्राह्मण (वैदिक) यज्ञ कर रहा था।
इसके पश्चात् (वहां) वे अनगार (जयघोष) मासखमण (एक मास के उपवास रूप तप) के पारणे (व्रतान्त भोजन) के लिए विजयघोष के (द्वारा किए जा रहे) यज्ञ में भिक्षा हेतु उपस्थित हुए।
अध्ययन-२५
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