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७८. “(जिसका) संसार (राग-द्वेष रूप भाव जगत्) क्षीण नष्ट हो चुका
है (ऐसे) सर्वज्ञ जिनेन्द्र रूपी सूर्य का उदय हो चुका है, वही समस्त लोक के प्राणियों के लिए प्रकाश (व मार्गदर्शन) करेगा।"
७६. (महामुनि केशीकुमार ने कहा-) “हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ
है। आपने ने मेरा यह संशय दूर कर दिया। (किन्तु एक) अन्य संशय भी मुझे है, हे गौतम! उसके विषय में (भी) मुझे आप बताएं।" “हे मुने! (विविध) शारीरिक व मानसिक दुःखों से पीड़ित हो रहे प्राणियों के लिए आप किसे क्षेमकारी, शिव (जरा, रोग आदि उपद्रव से रहित) तथा बाधारहित स्थान मानते हैं?"
८०.
८१.(गौतम स्वामी ने कहा-) “(हे मुने!) लोक के अग्रभाग में एक
शाश्वत स्थान है, जहां पहुंचना कठिन होता है, और वहां वृद्धावस्था, मृत्यु तथा (किसी प्रकार की) व्याधियां व वेदनाएं नहीं।
होतीं ।” ८२. श्रमण केशीकुमार मुनि ने गौतम स्वामी से कहा- “आपने किस
स्थान का कथन किया है?" ऐसा कहने पर केशीकुमार को गौतम स्वामी ने यह कहा
८३. “(वह स्थान) 'निर्वाण' (नाम वाला) है, बाधारहित है, 'सिद्धि'
(पद) है, लोक के अग्रभाग में स्थित है। (वह) क्षेमकारी, शिव
और बाधाओं (बन्धनों) से रहित है, जहां महर्षि विचरण करते हैं।"
८४. “वह स्थान (प्राणियों के लिए) शाश्वत आवास है, जो लोक के
अग्रभाग में स्थित और दुष्प्राप्य है। संसार-समुद्र का अन्त कर देने वाले मुनि (ही) जिसे प्राप्त करते हैं और वे पुनः शोक-युक्त
नहीं होते ।” अध्ययन-२३
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