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अध्ययन परिचय
प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-समस्त संसार से शीघ्र ही मुक्त होने का मार्ग। इसमें सत्ताईस गाथायें हैं। आठ प्रवचन-माताओं के माध्यम से यह विषय साकार हुआ है। इसीलिये इसका नाम 'प्रवचन-माता' रखा गया। प्रवचन का अर्थ है-समस्त द्वादशांगी जिन-वाणी। मां बालक को जन्म देती है। उसका पालन-पोषण करती है। उसका व्यक्तित्व निर्मित करती है। उसी में अपने होने की सार्थकता पाती है। उसी प्रकार जिन-वाणी साधक को जन्म देती है। उसका पालन-पोषण करती है। उसका व्यक्तित्व निर्मित करती है। उसी में फलित व अभिव्यक्त होकर साकार होती है। इस मां की विशेषता यह है कि इसका वात्सल्य जन्म व मृत्यु तक सीमित नहीं होता। साधक के परम लक्ष्य प्राप्त करने तक यह वात्सल्य उसे बल देता रहता है।
प्रवचन-माता साधक को प्राय: सहजता से प्राप्त नहीं होती। मनुष्य-देह, प्रवचन-श्रवण के अवसर, श्रद्धा, ज्ञान व तदनुरूप आचरण के संयोग के समान उसकी प्राप्ति दुर्लभ है। प्रवचन-मातायें दुर्लभ शुभ संयोगों के उपस्थित होने पर अपने श्रम व पराक्रम से जीव अर्जित करता है। यह अर्जन उसकी • आत्मिक सम्पदा है। अक्षय सम्पदा। एक बार इसे अर्जित कर लेने पर भवभ्रमण से ये मातायें उसकी रक्षा करती हैं। उसे सन्मार्ग देती हैं। प्रस्तुत अध्ययन जिन-वाणी-सार-रूपी इन्हीं माताओं का स्वरूप स्पष्ट करता है।
पांच समितियों और तीन गुप्तियों से यह स्वरूप निर्मित हुआ है। शुभ दिशा में प्रवृत्ति समिति है और अशुभ भावों-वचनों-कर्मों का निवारण गुप्ति । गुप्ति का अर्थ है-अपने जीवन से अशुभ का मूलोच्छेद करते हुए अपनी आत्मा को अशुभ के अनिष्ट से सुरक्षित कर देना। समिति का अर्थ है-अपने जीवन को शुभत्व से परिपूर्ण करते हुए अपनी आत्मा को परम मंगल के मार्ग पर अग्रसर कर देना। अशुभ से सुरक्षित और शुभ से परिपूर्ण जीवन ही प्रवचन-माता-सम्पन्न जीवन है।
वस्तुत: आठ प्रवचन-माताओं के रूप में उस विवेक को अभिव्यक्ति मिली है, जो पाप-कर्म-बंधन को असम्भव बना देता है। इन से यह भी ज्ञात होता है कि विवेक केवल अमूर्त या निराकार शक्ति नहीं है। पांच समितियों और तीन गुप्तियों के रूप में सक्रिय होते हुए उसे देखा भी जा सकता है। जाना जा सकता है। भिन्न-भिन्न संदर्भों में विवेक-शक्ति को साकार रूप देने के
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उत्तराध्ययन सूत्र