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६६. “विदंशक (बाज) पक्षियों, जालों व वज्रलेपों (के रूप में
परम-अधार्मिक देवों) द्वारा मैं पक्षी की तरह अनन्त बार पकड़ा, (चिपकाने वाले द्रव्य से स्थान-विशेष पर) चिपकाया, वांधा तथा
मारा जा चुका हूं।" ६७. “बढ़ई के द्वारा जिस प्रकार वृक्ष (छेदा काटा जाता है) उसी
प्रकार कुल्हाड़ियों व फरसों आदि के द्वारा मैं अनन्त बार कूटा, फाड़ा (चीरा) छेदा व छीला गया हूं।"
६८.
“लुहारों द्वारा जिस प्रकार लोहे को (पीटा-कूटा आदि जाता है) उसी प्रकार, (परम अधार्मिक असुर) कुमारों द्वारा चपत व मुक्के
आदि (के प्रहारों) से मैं अनन्त बार पीटा, कूटा, भेदा एवं चूरचूर किया गया हूं।"
६६. “अत्यंत भयंकर रूप से रोते-चिल्लाते हुए मुझ को कलकल
करता उबलता उफनता हुआ गर्मगर्म तांबा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया ।"
७०. “तुझे (पूर्व जन्म में) टुकड़े-टुकड़े किया हुआ तथा शूल में
पिरोकर बनाया हुआ मांस प्रिय था (इस प्रकार) मुझे स्मरण कराते हुए, (मेरे ही शरीर के मांस को पकाते हुए) अग्नि जैसा
लाल रंग का (बना कर) अनेक बार खिलाया जा चुका है।" ७१. “तुझे (पूर्व जन्म में) सुरा, सीधु (ताड़ी आदि) मैरेय (जो आदि
के आटे से बनी) और मधु (फूलों से तैयार की गई, आदि मदिराएं) प्रिय थीं, (इसे स्मरण कराते हुए) मुझे जलती हुई (मेरी
अपनी ही) चर्वी और (खोलता हुआ) खून पिलाया गया था।" ७२. “(पूर्व-जन्मों में नरक वास के दौरान, पूर्वोक्त प्रकार से) नित्य
ही भयभीत त्रस्त, दुःखी व व्यथित रहते हुए मुझे दुःखपूर्ण ‘परम' (अत्युग्र) वेदनाओं का अनुभव हो चुका है।"
अध्ययन-१६
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