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१६. “जो (व्यक्ति) पाथेय (रास्ते की भोजन-सामग्री) के बिना लम्बे
मार्ग पर चल पड़ता है, वह चलते हुए भूख-प्यास से पीड़ित होकर, दु:खी होता है।"
२०. “इसी प्रकार, (जो व्यक्ति, 'पाथेय' रूप) धर्म को किए बिना,
पर-भव में गमन करता है, वह जाते हुए व्याधि व रोगों से पीड़ित होकर दुःखी होता है।"
२१. “किन्तु जो (व्यक्ति) 'पाथेय' (समुचित भोजनादि-सामग्री) के
साथ, लम्बे मार्ग पर (भी) जाता है, वह चलता हुआ भूख व प्यास (की बाधा) से रहित होकर सुखी रहता है।"
२२. “उसी प्रकार, जो (व्यक्ति) यदि धर्म करके पर-भव में जाता है,
वह जाता हुआ अल्प (पाप) कर्म वाला, वेदना-रहित, सुखी रहता है।"
२३. “जिस प्रकार, घर को आग लग जाने पर, उस घर का स्वामी
सारभूत (अधिक मूल्यवान्) वस्तुओं को निकाल लेता है, असारभूत (मूल्यहीन) वस्तुओं को छोड़ देता है।"
“उसी प्रकार (यदि) आप दोनों की अनुमति मुझे प्राप्त हो जाए (तो) बुढ़ापा व मृत्यु (आदि) द्वारा दग्ध हो रहे (इस) लोक में (सर्वाधिक मूल्यवान् अपनी) आत्मा को तारूंगा (सुरक्षित बाहर
निकालूंगा)।” २५. (तब) माता-पिता उस (मृगापुत्र) को यह बोले-“हे पुत्र!
श्रमण-चर्या दुष्कर है। भिक्षु को (तो) हजारों गुण (व्रत-नियम आदि) धारण करने होते हैं।”
अध्ययन-१६
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