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सूत्र-५.
हो (सकता है, अथवा केवली (भगवान्) द्वारा उपदिष्ट 'धर्म' से भ्रष्ट हो (सकता है। इसलिए (ऐसा कहा गया है कि जो) स्त्री, पशु व नपुंसक के संसर्ग से युक्त शयन व आसन का सेवन नहीं करता है, वह 'निर्ग्रन्थ' है। (द्वितीय ब्रह्मचर्य-समाधिस्थान-) (जो) स्त्रियों की (जाति, रूप, कुल, वेष, श्रृंगार आदि से सम्बन्धित) कथा नहीं करता, वह 'निर्ग्रन्थ' है। ऐसा क्यों? (शिष्य-जिज्ञासा) (उक्त प्रश्न के उत्तर में) आचार्य ने कहा-स्त्रियों की कथा करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में (स्वयं को व दूसरों को) शंका हो (सक)ती है, या फिर कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न हो (सकती है, या (ब्रह्मचर्य का) नाश हो (सकता है, अथवा उन्माद (रोग) को (भी) प्राप्त कर (सकता है, या दीर्घकालिक रोग व आतंक हो (सक)ता है, अथवा केवली (भगवान्) द्वारा उपदिष्ट 'धर्म' से भ्रष्ट हो (सकता है। इसलिए, स्त्री-कथा नहीं करे ।
सूत्र-६. (तृतीय ब्रह्मचर्य-समाधिस्थान-) (जो) स्त्रियों के साथ, एक ही
आसन पर नहीं बैठता है, वह 'निर्ग्रन्थ' है। ऐसा क्यों? (उक्त प्रश्न के उत्तर में) आचार्य ने कहा-स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में (स्वयं को व दूसरों को) शंका हो (सकती है, या फिर कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न हो (सकती है, अथवा (ब्रह्मचर्य का) नाश हो (सकता है, या फिर उन्माद (रोग) को (भी) प्राप्त कर (सकता है, या दीर्घकालिक रोग व आतंक हो
अध्ययन-१६
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