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४८. सौवीर राजाओं में श्रेष्ठ 'उदायन' राजा (भी) राज्य छोड़कर
प्रव्रजित हुए। (उन्होंने) मुनि रूप में विचरण किया और अनुत्तर गति (मुक्ति) प्राप्त की।
४६. इसी प्रकार, 'श्रेय' व 'सत्य' (संयम) में पराक्रमी काशीराज ने
(भी) काम-भोगों का त्याग कर कर्म-रूपी महावन का ध्वंस किया।
५०. इसी प्रकार, अविनाशी कीर्ति के धारक, महायशस्वी 'विजय'
राजा (भी) गुणों (कोश, दुर्ग आदि से या मनोज्ञ विषय-भोगों) से समृद्ध राज्य का परित्याग कर प्रव्रजित हुए।
५१. इसी प्रकार, राजर्षि महाबल ने अनाकुल व अविक्षिप्त चित्त के
साथ तपश्चर्या कर, अपना शीर्ष देकर (अहंकार का विसर्जन कर) 'शीर्ष' (शीर्षस्थ मोक्ष व केवल-ज्ञानश्री) को प्राप्त किया।
५२. इन (पूर्वोक्त) शूर-वीर व दृढ़पराक्रमी (राजाओं) ने (जिन-शासन
की) विशेषता को ग्रहण किया था। इसलिए (इन पूर्वोक्त उदाहरणों को सुनकर भी कोई) धीर (साधक पूर्वोक्त) अहेतुवादों (एकान्तदृष्टि वाले कुतर्को) से (प्रेरित होकर, असत्प्रलापी) उन्मत्त व्यक्ति के समान, धरती पर कैसे विचरण
कर सकता है? (अर्थात् नहीं कर सकता ।) ५३. अत्यन्त पुष्ट हेतुओं (युक्तियों) के कारण ‘सक्षम' (या अत्यन्त
कर्म-मल-शुद्धि में समर्थ) यह सत्य वाणी मैंने कही है। (इसे अंगीकार कर) कई-एक (जीव संसार-समुद्र को) पार कर चुके हैं, कुछ तो (वर्तमान में भी) पार हो रहे हैं, और भविष्य में
(भी) पार करेंगे। अध्ययन-१८
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