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अध्ययन-सार :
प्राणि-हिंसा करने के अनन्तर, मुनि कोप की सम्भावना से भयत्रस्त होकर क्षमायाचना हेतु शरण में आए हुए राजा 'संजय' को अनगार गर्दभालि ने उपदेश दिया:
"वैभव, शारीरिक सौन्दर्य व जीवन-ये सभी विनश्वर हैं। संसारी प्राणी के लिए मृत्यु एक अनिवार्य घटना है। मृत्यु के बाद, समस्त अर्जित सम्पत्ति, अन्तःपुर व राजकोष यहीं छूट जाता है जिसका उपभोग अन्य व्यक्ति करते हैं। साथ जाता है तो मात्र अपने कर्मों का संचय। इसलिए विषय-भोगों में आसक्ति रख कर, परलोक के हित को अनदेखा करना कहां तक उचित है?" उक्त उपदेश से प्रभावित हो, राजा 'संजय' मुनि संजय बन गये। एक दिन क्षत्रिय राजर्षि का वहां पर्दापण हुआ जिन्होंने संजय मुनि के समक्ष कुछ चिन्तन-बिन्दु प्रस्तुत किये जो इस प्रकार हैं
"ज्ञातृवंशीय, सत्यवाक्, सत्यपराक्रमी व ज्ञान-आचार सम्पन्न तत्त्वज्ञानी भगवान् महावीर ने यह स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है कि पापी घोर नरक में जाते हैं, और धर्मिष्ठ व्यक्ति दिव्य गति प्राप्त करते हैं। क्रियावादी आदि अनेक मिथ्यादृष्टि दार्शनिक मनगढन्त एकान्तवाद का आश्रयण लेकर प्रवर्तित होते हैं जो कपटपूर्ण भाषा का प्रयोग करने वाले अनार्य हैं। उन्हें अच्छी तरह समझ कर संयतात्मा मुनि को उनके दुष्प्रभाव से स्वयं को सुरक्षित रखना चाहिए और संयम-पथ पर निर्बाध बढ़ते रहना चाहिए।"
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उत्तराध्ययन सूत्र