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छोटे-बड़े विविध तप करने वाले, तथा समभाव से ऊंचे-नीचेमध्यम घरों में भिक्षार्थ जाने वाले जो) मुनि विचरण (भिक्षाटन)
करते हैं, उत्तम पुण्य-क्षेत्र तो वे हैं।" १६. (पुरोहित का कथन-) “अध्यापकों के प्रतिकूल बोलने वाले
निर्ग्रन्थ! तुम हमारे सामने क्या (बढ़-चढ़ कर) बोले जा रहे हो? भले यह अन्न-जल (खाद्य व पेय पदार्थ सड़ कर) नष्ट (ही क्यों न) हो जाय, (परन्तु) तुझे (तो हम) नहीं देंगे।"
१७. (यक्ष का कथन-) “(पांच) समितियों से सुसमाहित (समीचीन
क्रिया वाले), (तीन) गुप्तियों से गुप्त (सुरक्षित), इन्द्रियविजयी मुझ (जैसे उत्तम पात्र) को (भी) यदि (तुम लोग) एषणीय (निर्दोष
आहार) नहीं दोगे, (तो भला इन) यज्ञों का आज क्या लाभ ले
पाओगे?" १८. (अध्यापक-पुरोहितों का कथन-) “है कोई यहां क्षत्रिय (वीर),
अथवा उपज्योतिष्क (यज्ञ करने वाले या रसोई में काम करने वाले) अथवा अपने चेलों के साथ (आये) अध्यापक, जो इस (निर्ग्रन्थ) को डण्डे से (या बांस, लाठी आदि से, या कुहनी मार कर), तथा पटिया (या ढेले आदि) से मार-पीट कर, गले में
(हाथ) डालते हुए बाहर निकाल दे?" | १६. अध्यापकों के वचन (आदेश) को सुनकर, बहुत-से कुमार (छात्र
आदि) दौड़े हुए वहां आ गए (और वे) उस ऋषि को डण्डों, बेंतों और चाबुकों से पीटने लगे।
। २०. वहां कोशल देश के राजा की पुत्री, (जो) 'भद्रा' नाम की, तथा
अनिन्द्य (सुन्दर) शरीर वाली (थी, वह) उस संयमी (मुनि) को पिटते देखकर (उन) क्रुद्ध कुमारों को (समझा-बुझाकर) शान्त करने लगी।
अध्ययन-१२
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