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२२. (पिता पुरोहित की जिज्ञासा-) “हे पुत्रो! यह लोक किससे
अभ्याहत (प्रताड़ित/पीड़ित) हो रहा है, और कौन इसे घेरे हुए है, और 'अमोघा' किसे कहते हैं? (यह जानने के लिए) में चिन्तातुर (व्याकुल) हो रहा हूँ।''
२३. (पुरोहित-कुमारों का कथन-)
"हे पिता जी! आप ठीक से समझ लें कि यह लोक मृत्यु से अभ्याहत (प्रताड़ित/पीड़ित) हो रहा है, वृद्धावस्था ने इसे घेर रखा है, और राात्रि (समय-चक्र) को ‘अमोघा' कहते हैं।"
२४. “जो-जो रात्रि व्यतीत होती जा रही है, वह लौट कर नहीं आ
पाती। अधर्म का आचरण करने वाले की (सब) रात्रियां निष्फल (व्यर्थ या सुफल-रहित) होती हैं।” |
२५. “जो-जो रात्रि व्यतीत होती जा रही है, वह लौट कर नहीं आ
पाती। धर्म का आचरण करने वाले (व्यक्ति) की (सब) रात्रियां सफल (सार्थक व सुफल-युक्त) होती हैं।"
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२६. (पुरोहित पिता का कथन-) "हे पुत्रो! तुम दोनों और हम एक
साथ (गृहस्थ-आश्रम में) सम्यक्त्व (व व्रतों) से युक्त होकर रह लें, बाद में (वृद्धावस्था में) घर-घर भिक्षा मांगते हुए (हम सब) विहार (प्रारम्भ) करेंगे।"
२७. (पुत्रों का कथन-) “(हे पिता जी!) जिसकी मृत्यु से मित्रता हो,
या जो (उससे बच कर) पलायन कर सकता हो, या फिर जो यह समझ बैठा है कि मरूंगा ही नहीं, वही (धर्माचरण को) कल (करने) की इच्छा कर सकता है।"
अध्ययन-१४
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