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१४. (जो) हमेशा गुरु-कुल में (अर्थात् गुरु की आज्ञा के अधीन, तथा
गुरु के गण-गच्छ में ही) रहता है, 'योग' (प्रशस्त धार्मिक प्रवृत्ति व ध्यान-समाधि) में संलग्न रहने वाला है, तथा 'उपधान' (श्रुत-अध्ययन से सम्बन्धित तप-विशेष) में निरत रहता है, तथा जो प्रियकारी व प्रियवादी होता है, वह (ही) शिक्षा प्राप्त करने
योग्य होता है। १५. जिस प्रकार शंख में रखा हुआ दूध, दोनों ही प्रकार से (अर्थात्
स्वयं की तथा शंख की निर्मलता से) शोभा पाता है (अर्थात् विकार-रहित, निर्मल व स्वच्छ बना रहता है), उसी प्रकार, 'बहुश्रुत' भिक्षु में धर्म, कीर्ति तथा श्रुतज्ञान (भी निर्मल
विकाररहित व निर्दोष बने रहते हैं)। १६. जिस प्रकार, कम्बोज देश के घोड़ों में 'कन्थक' घोड़ा 'आकीर्ण'
(अर्थात् शील, बल, रूप आदि गुणों से समृद्ध तथा उत्तम जाति वाला), एवं वेग/स्फूर्ति में उत्तम (कोटि का) होता है, उसी प्रकार 'बहुश्रुत' (भी विनय-शील आदि सद्गुणों से समृद्ध तथा ज्ञान
व क्रिया में प्रखर व अस्खलित गति वाला) हुआ करता है। १७. जिस प्रकार (उक्त) 'आकीर्ण' घोड़े पर चढ़ा हुआ, दृढ़ पराक्रमी,
शूर-वीर (योद्धा, संग्राम में विजय के उपरान्त) दोनों ओर (अर्थात् दायें-बायें या आगे-पीछे) 'नान्दीघोष' (विजय-सूचक मांगलिक वाद्यों के साथ किये जाने वाले उद्घोषों) से (सुशोभित होता है), उसी प्रकार ‘बहुश्रुत' (भी जिन-वचन रूपी घोड़े पर आरूढ़, अभिमानी वादियों पर विजय पाने के कारण मांगलिक जयघोष से तथा स्वाध्याय-रूपी उद्घोष से) सुशोभित हुआ करता है। जिस प्रकार, हथिनियों से घिरा हुआ साठ वर्षीय हाथी बलिष्ठ व अपराजेय होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (स्थविर भी विशिष्ट बुद्धियों व विद्याओं से सेवित एवं शास्त्र-'वाद' में अपराजित) हुआ करता है।
अध्ययन-११
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