Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के द्वारा स्वदेवी-परिचारणा का निदान करना निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के द्वारा सहज दिव्यभोग का निदान करना श्रमणोपासक होने के लिये निदान करना श्रमण होने के लिये निदान करना निदान रहित की मुक्ति परिशिष्ट
१०१ १०३ १०६ १०८
११३ ११७
सारांश
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बृहत्कल्पसूत्र (१२५-२५८) प्रथम उद्देशक
साधु-साध्वी के प्रलंब-ग्रहण करने का विधि-निषेध ग्रामादि में साधु-साध्वी के रहने की कल्पमर्यादा ग्रामादि में साधु-साध्वी को एक साथ रहने का विधि-निषेध आपणगृह आदि में साधु-साध्वियों के रहने का विधि-निषेध बिना द्वार वाले स्थान में साधु-साध्वी के रहने का विधि-निषेध साधु-साध्वी को घटीमात्रक ग्रहण करने का विधि-निषेध चिलमिलिका(मच्छरदानी) ग्रहण करने का विधान पानी के किनारे खड़े रहने आदि का निषेध सचित्र उपाश्रय में ठहरने का निषेध सागारिक की निश्रा लेने का विधान गृहस्थ-युक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध प्रतिबद्ध शय्या में ठहरने का विधि-निषेध प्रतिबद्ध मार्ग वाले उपाश्रय में ठहरने का विधि-निषेध . स्वयं को उपशान्त करने का विधान विहार सम्बन्धी विधि-निषेध वैराज्य-विरुद्धराज्य में बारम्बार गमनागमन का निषेध गोचरी आदि में निमंत्रित वस्त्र आदि के ग्रहण करने की विधि रात्रि में आहारादि.की गवेषणा का निषेध एवं अपवाद विधान रात्रि में गमनागमन का निषेध रात्रि में स्थंडिल एवं स्वाध्याय भूमि में अकेले जाने का निषेध आर्यक्षेत्र में विचरण करने का विधान प्रथम उद्देशक का सारांश
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