Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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८८]
[ दशाश्रुतस्कन्ध
'अज्जो' त्ति समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासीप० –'सेणियं रायं, चेल्लणादेविं पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुपज्जित्था - अहो णं सेणिए राया महिड्डिए जाव से तं साहू ; अहो णं चेल्लणा देवी महिड्डिया जाव से तं साहू । समट्ठे ?"
उ०- हंता, अत्थि ।
वहां (गुणशीलचैत्य में) श्रेणिक राजा और चेलणादेवी को देखकर कुछ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थनियों के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिंतन, चाहना और मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ
'अहो ! यह श्रेणिक राजा महान् ऋद्धि वाला यावत् बहुत सुखी है। यह स्नान करके यावत् सर्वालंकारों से विभूषित होकर चेलणादेवी के साथ मानुषिक भोग भोग रहा है। हमने देवलोक के देव देखे नहीं हैं। हमारे सामने तो यही साक्षात् देव है। यदि चारित्र, तप, नियम, ब्रह्मचर्य पालन एवं त्रिगुप्ति की सम्यक् प्रकार से की गई आराधना का कोई कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो हम भी भविष्य में इस प्रकार के अभिलषित मानुषिक भोग भोगें तो श्रेष्ठ होगा।'
'अहो! यह चेलणादेवी महान् ऋद्धिवाली है यावत् बहुत सुखी है। वह स्नान करके यावत् सभी अलंकारों से विभूषित होकर राजा के साथ मानुषिक भोग भोग रही है । हमने देवलोक की देवियाँ नहीं देखी हैं। हमारे सामने तो यही साक्षात् देवी है। यदि चारित्र, तप, नियम एवं ब्रह्मचर्य पालन का कुछ विशिष्ट फल हो तो हम भी भविष्य में ऐसे ही मानुषिक भोग भोगें तो श्रेष्ठ होगा । '
श्रमण भगवान् महावीर ने बहुत से निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थनियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार
कहा
प्र० - ' आर्यो ! श्रेणिक राजा और चेलणादेवी को देखकर इस प्रकार के अध्यवसाय यावत् विचार उत्पन्न हुए–'अहो ! श्रेणिक राजा महर्द्धिक है यावत् तो यह श्रेष्ठ होगा । अहो चेलणादेवी महर्द्धिक है यावत् तो यह श्रेष्ठ होगा।' हे आर्यो ! यह वृत्तान्त यथार्थ है ?
उ०—हां भगवन्! यह वृत्तान्त यथार्थ है ।
१. निर्ग्रन्थ का मनुष्यसम्बन्धी भोगों के लिए निदान करना
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे, अणुत्तरे, पडिपुणे, केवले, संसुद्धे, णेआउए, सल्लकत्तणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमग्गे, निज्जाणमग्गे, निव्वाणमग्गे, अवितहमविसंधी, सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे ।
इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति, बुज्झंति, मुच्वंति, परिनिव्वायंति, सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । जस्स णं धम्मस्स नग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे, पुरा दिगिंछाए, पुरा पिवासाए, पुरासीतातवेहिं, पुरा पुट्ठेहिं विरूवरूवेहिं परीसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा से य परक्कमेज्जा, से य परक्कममाणे पासेज्जा - जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया ।