Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 531
________________ ४५०] [व्यवहारसूत्र बड़ीदीक्षा देने का कालप्रमाण १७. तओ सेहभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-१. सत्तराइंदिया, २. चाउम्मासिया, ३. छम्मासिया। छम्मासिया उक्कोसिया। चाउम्मासिया मज्झमिया। सत्तरइंदिया जहन्निया। १७. नवदीक्षित शिष्य की तीन शैक्ष-भूमियां कही गई हैं, जैसे-१. सप्तरात्रि, २. चातुर्मासिक, ३. पाण्मासिकी। उत्कृष्ट छह मास से महाव्रत आरोपण करना। मध्यम चार मास से महाव्रत आरोपण करना। जघन्य सात दिन-रात के बाद महाव्रत आरोपण करना। विवेचन-दीक्षा देने के बाद एवं उपस्थापना के पूर्व की मध्यगत अवस्था को यहां शैक्षभूमि कहा गया है। जघन्य शैक्षकाल सात अहोरात्र का है, इसलिए कम से कम सात रात्रि व्यतीत होने पर अर्थात् आठवें दिन बड़ीदीक्षा दी जा सकती है। उपस्थापना संबंधी अन्य विवेचन व्यव. उद्दे. ४ सूत्र १५ में देखें। प्रतिक्रमण एवं समाचारी अध्ययन के पूर्ण न होने के कारण मध्यम और उत्कृष्ट शैक्ष-काल हो सकता है, अथवा साथ में दीक्षित होने वाले कोई माननीय पूज्य पुरुष का कारण भी हो सकता है। जघन्य शैक्ष-काल तो सभी के लिए आवश्यक ही होता है। इतने समय में कई अंतरंग जानकारियां हो जाती हैं, परीक्षण भी हो जाता है और प्रतिक्रमण एवं समाचारी का ज्ञान भी पूर्ण कराया जा सकता है। किसी अपेक्षा को लेकर सातवें दिन बड़ीदीक्षा देने की परम्परा भी प्रचलित है, किंतु सूत्रानुसार सात रात्रि व्यतीत होने के पूर्व बड़ीदीक्षा देना उचित नहीं है। इस विषयक विशेष विवेचन उ. ४ सू. १५ में देखें। बालक-बालिका को बड़ीदीक्षा देने का विधि-निषेध १८. नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुडगं वा खुड्डियं वा ऊणट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा सुंभुंजित्तए वा। . १९. कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेग अट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा। १८. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को आठ वर्ष से कम उम्र वाले बालक-बालिका को बड़ीदीक्षा देना और उनके साथ आहार करना नहीं कल्पता है। १९. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को आठ वर्ष से अधिक उम्र वाले बालक-बालिका को बड़ीदीक्षा देना और उनके साथ आहार करना कल्पता है। विवेचन-पूर्व सूत्र में शैक्ष-भूमि के कथन से उपस्थापना काल कहा गया है और यहां पर क्षुल्लक-क्षुल्लिका अर्थात् छोटी उम्र के बालक-बालिका की उपस्थापना का कथन किया गया है। यदि माता-पिता आदि के साथ किसी कारण से छोटी उम्र के बालक को दीक्षा दे दी जाय तो कुछ भी अधिक आठ वर्ष अर्थात् गर्भकाल सहित नौ वर्ष के पूर्व बड़ीदीक्षा नहीं देनी चाहिए। इतना समय

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