Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 488
________________ आठवां उद्देशक ] [ ४०७ शारीरिक कारणों से उसे अनेक औपग्रहिक उपकरण रखने पड़ रहे हैं। उन सभी उपकरणों को साथ लेकर गोचरी आदि के लिए वह नहीं जा सकता है। उसे असुरक्षित स्थान रहने को मिला हो तो वहां उन उपकरणों को छोड़कर जाने पर बच्चे या कुत्ते उन्हें तोड़-फोड़ दें या लेकर चले जाएं अथवा चोर चुरा लें इत्यादि कारणों से सूत्र में यह विधान किया गया है कि वह वृद्ध भिक्षु अपने उपकरणों की सुरक्षा के लिए किसी को नियुक्त करके जाए या पास में ही कोई बैठा हो तो उसे सूचित करके जाए और पुनः आने पर उसे सूचित कर दे कि 'मैं आ गया हूँ', उसके बाद ही उन उपकरणों को ग्रहण करे । शारीरिक स्थितियों से विवश अकेले वृद्ध भिक्षु के लिए भी इस सूत्र में जो अपवादों का विधान किया गया है, इससे यह स्पष्ट होता है कि सूत्रकार की या जिनशासन की अत्यन्त उदार एवं अनेकांत दृष्टि है। सूत्रोक्त वृद्ध भिक्षु चलते समय सहारे के लिए दण्ड या लाठी रखता है, गर्मी आदि से रक्षा के लिए छत्र रखता है, मल-मूत्र - कफ आदि विकारों के कारण अनेक मात्रक रखता है, मिट्टी के घड़े आदि भांड भी रखता है, अतिरिक्त वस्त्र - पात्र रखता है, मच्छर आदि के कारण मच्छरदानी भी रखता है, बैठने में सहारे के लिए भृसिका - काष्ठ आसन करता है, चर्मखण्ड, चर्मकोष (उपानह, जूता आदि ) या चर्मछेदनक भी रखता है अर्थात् अपने आवश्यक उपयोगी कोई भी उपकरण रखता है। उनमें से जिन उपकरणों की गोचरी जाने के समय आवश्यकता न हो उनके लिए सूत्र में यह विधान किया गया है। विशिष्ट साधना वाले पडिमाधारी या जिनकल्पी भिक्षु औपग्रहिक उपकरण रखने आदि के अपवादों का सेवन नहीं करते हैं और गच्छगत भिक्षु की ऐसी सूत्रोक्त परिस्थिति होना सम्भव भी नहीं है। क्योंकि गच्छ में अनेक वैयावृत्य करने वाले होते हैं । अतः परिस्थितिवश सामान्य बहुश्रुत भिक्षु भी जीवनपर्यन्त एकाकी रहकर यथाशक्ति संयम मर्यादा का पालन करते हुए विचरण कर सकता, यह इस सूत्र में स्पष्ट होता है। शय्या - संस्तारक के लिए पुन: आज्ञा लेने का विधान ६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा, सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्वंपि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता बहिया नीहरित्तए । ७. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा, सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चपि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता बहिया नीहरित्तए । ८. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा, सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए । ९. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा, सागारियर्सतियं वा सज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए ।

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