Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्यवहारसूत्र सप्तसप्ततिका आदि भिक्षुप्रतिमाएं
३७. सत्त-सत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एगूणपन्नाए राइदिएहिं छन्नउएणं भिक्खासएणं अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ।
३८. अट्ठ-अट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइंदिएहिं दोहिं य अट्ठासिएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ।
____३९. नव-नवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीए राइदिएहिं चउहिं च पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ।
४०. दस-दसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइंदियसएणं अद्धछट्टेहिं य भिक्खासएहिं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ।
३७. सप्तसप्तमिका-सप्त-सप्तदिवसीय भिक्षुप्रतिमा उनचास अहोरात्र में एक सौ छियानवै भिक्षादत्तियों के सूत्रानुसार यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है।
३८. अट्ठअट्ठमिया-अष्ट-अष्टदिवसीय भिक्षुप्रतिमा चौसठ अहोरात्र में दो सौ अठासी भिक्षादत्तियों से सूत्रानुसार यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है।
३९. नवनवमिया-नौ-नौदिवसीय भिक्षुप्रतिमा इक्यासी अहोरात्र में चार सौ पांच भिक्षादत्तियों से सूत्रानुसार यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है।
४०. दसदसमिया-दश-दशदिवसीय भिक्षुप्रतिमा सौ अहोरात्र में पांच सौ पचास भिक्षादत्तियों से सूत्रानुसार यावत् जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है।
विवेचन-इन सूत्रों में चार प्रतिमाओं का वर्णन किया गया है, जिनकी आराधना साधुसाध्वी दोनों ही कर सकते हैं।
___अंतगडसूत्र के आठवें वर्ग में सुकृष्णा आर्या द्वारा इन भिक्षुप्रतिमाओं की आराधना करने का वर्णन है।
इन प्रतिमाओं में साध्वी भी स्वयं अपनी गोचरी लाती है, जिसमें निर्धारित दिनों तक भिक्षादत्ति की मर्यादा का पालन किया जाता है। इन प्रतिमाओं में निर्धारित दत्तियों से कम दत्तियां ग्रहण की जा सकती हैं या अनशन तपस्या भी की जा सकती है। किन्तु किसी भी कारण से मर्यादा से अधिक दत्ति ग्रहण नहीं की जा सकती है।
इन प्रतिमाओं में उपवास आदि तप करना आवश्यक नहीं होता है, स्वाभाविक ही प्रायः सदा ऊनोदरी तप हो जाता है।
सप्तसप्ततिका भिक्षुप्रतिमा-प्रथम सात दिन तक एक-एक दत्ति, दूसरे सात दिन तक दोदो दत्ति, यों क्रमशः सातवें सप्तक में सात-सात दत्ति ग्रहण की जाती है। इस प्रकार सात सप्तक के ४९