Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 513
________________ ४३२] सूत्र ४३-४४ ४५ ४६ उपसंहार सूत्र १-३६ ३७-४२ ४३-४४ ४५-४६ [ व्यवहारसूत्र एक बार में अखंड धार से साधु के हाथ में या पात्र में दिये जाने वाले आहारादि को 'एक दत्ति' कहा जाता है। तीन प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं (१) संस्कारित पदार्थ, (२) शुद्ध अलेप्य पदार्थ, (३) शुद्ध सलेप्य पदार्थ । इनमें से कोई भी अभिग्रह धारण किया जा सकता है। 'प्रगृहीत' नामक छट्ठी पिंडेषणा के योग्य आहार की तीन अवस्थाएं होती हैं । (१) बर्तन में से निकालते हुए, (२) परोसने के लिये ले जाते हुए, (३) थाली आदि में परोसते हुए । अथवा अपेक्षा से उस आहार की दो अवस्था कही जा सकती हैं - (१) बर्तन में से निकालते हुए, (२) थाली आदि में परोसते हुए । इस उद्देशक में शय्यातक के खाद्यपदार्थ के कल्प्याकल्प्य का, दत्ति-परिमाण प्रतिमाओं का एवं प्रश्रवण-पान प्रतिमाओं का, दत्तिस्वरूप का, अभिग्रह योग्य आहार के प्रकार, इत्यादि विषयों का कथन किया गया है। ॥ नवम उद्देशक समाप्त ॥

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