Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्यवहारसूत्र
७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - १. गणसोहकरे नामं एगे, नो माणकरे, २. माणकरे नामं एगे, नो गणसोहकरे, ३. एगे गणसोहकरे वि, माणकरे वि, ४. एगे नो गणसोहकरे, नो माणकरे ।
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८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- १. गणसोहिकरे नामं एगे, नो माणकरे, २. माणकरे नामं एगे, नो गणसोहिकरे, ३. एगे गणसोहिकरे वि, माणकरे वि, ४. एगे नो गणसोहिकरे, नो माणकरे ।
४. चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गए हैं। जैसे - १. कोई साधु कार्य करता है, किन्तु मान नहीं करता है । २. कोई मान करता है, किन्तु कार्य नहीं करता है । ३. कोई कार्य भी करता है और मान भी करता है । ४. कोई कार्य भी नहीं करता है और मान भी नहीं करता है ।
५. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं । जैसे- १. कोई गण का काम करता है, परन्तु मान नहीं करता है । २. कोई मान करता है, परन्तु गण का काम नहीं करता है । ३. कोई गण का काम भी करता है और मान भी करता है । ४. कोई न गण का काम करता है और न मान करता है। ६. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं। जैसे - १. कोई गण के लिए संग्रह करता है, परन्तु मान नहीं करता है। २. कोई मान करता है, परन्तु गण के लिए संग्रह नहीं करता है । ३. कोई गण लिए संग्रह भी करता है और मान भी करता है । ४. कोई न गण के लिए संग्रह करता है और न मान करता है।
७. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं। जैसे - १. कोई गण की शोभा बढ़ाता है, किन्तु मान नहीं करता है । २. कोई मान करता है, किन्तु गण की शोभा नहीं बढ़ाता है । ३. कोई गण की शोभा भी बढ़ाता है और मान भी करता है । ४. कोई न गण की शोभा बढ़ाता है और न मान ही करता
है।
८. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं। जैसे - १. कोई गण की शुद्धि करता है, परन्तु मान नहीं करता है। २. कोई मान करता है, परन्तु गण की शुद्धि नहीं करता है । ३. कोई गण की शुद्धि भी करता है और मान भी करता है । ४. कोई न गण की शुद्धि करता है और न मान ही करता है । विवेचन - प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न गुण होते हैं । अतः यहां भिन्न-भिन्न को लेकर संयमी पुरुषों के लिए पांच चौभंगियां कही हैं, उनमें निम्न विषय हैं - (१) अट्ठ - कुछ भी सेवा कार्य, (२) गणट्ठ-गच्छ के व्यवस्था संबंधी कार्य, (३) गणसंग्रह - गण के लिए साधु-साध्वी श्रावकश्राविकाओं की वृद्धि हो, आहार, पानी, वस्त्र, पात्र, शय्या - संस्तारक आदि सुलभ हों, ऐसे क्षेत्रों की वृद्धि करना, लोगों में धार्मिक रुचि एवं दान भावना की वृद्धि करना । (४) गणसोह - तप-संयम, ज्ञान-ध्यान, उपदेश एवं व्यवहारकुशलता से गण की शोभा की वृद्धि करना । (५) गणसोहि - साधु-साध्वी या श्रावक-श्राविका के आचार-व्यवहार की अशुद्धियों को विवेक से दूर करना। संघव्यवस्था की अव्यवस्था को उचित उपायों द्वारा सुधार कर उत्तम व्यवस्था करना ।